
जब चंद्रमा लाता है समृद्धि और शांति का संदेश
धर्म अध्यात्म डेस्क/स्वराज इंडिया
हिंदू एधर्म में शरद पूर्णिमा का अत्यंत धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को आने वाली यह पवित्र रात “कोजागरी पूर्णिमा” या “रास पूर्णिमा” के नाम से भी जानी जाती है। मान्यता है कि इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज की गोपियों के साथ महारास रचाया था, जो प्रेम, भक्ति और आत्मिक एकता का अद्भुत प्रतीक माना जाता है।इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी चांदनी में अमृत तुल्य तत्व विद्यमान रहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि जो भक्त शरद पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर चंद्रमा का दर्शन करते हैं, उन्हें दीर्घायु, धन, सौभाग्य और आध्यात्मिक शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।इस दिन श्रद्धालु प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है।रात्रि में चांदनी के नीचे खीर रखकर चंद्रमा की अमृतमयी किरणों से उसका स्पर्श करवाया जाता है। इसके बाद उसी खीर का प्रसाद स्वरूप सेवन करने से शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि होती है।भक्त “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जप कर माँ लक्ष्मी से कृपा की कामना करते हैं।

शरद पूर्णिमा के लाभ
🔹 यह व्रत मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
🔹 दरिद्रता और संकटों का नाश होता है तथा घर में लक्ष्मी कृपा स्थायी बनती है।
🔹चांदनी में रखी खीर का सेवन स्वास्थ्य लाभ और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
🔹 दांपत्य जीवन में प्रेम, सुख और सौहार्द का संचार होता है।
🔹 ध्यान और भक्ति में लीन व्यक्ति को आध्यात्मिक जागृति प्राप्त होती है।

विशेष मान्यतालोकमान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात स्वयं चंद्रदेव अमृत वर्षा करते हैं। इसलिए इस रात खुले आसमान के नीचे रखे गए भोजन में दिव्य ऊर्जा का संचार होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी इस समय की ठंडी चांदनी में स्वास्थ्यवर्धक तत्व मौजूद होते हैं, जो शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। शरद पूर्णिमा की यह पावन रात्रि सभी के जीवन में उजाला, समृद्धि और सुख-शांति लेकर आए।


