(स्वराज इंडिया विशेष रिपोर्ट)

देश के कई स्टेशनों पर अफरातफरी, टिकट के लिए लंबी लाइनें, ठसाठस डिब्बों में सफर से खुली पोल
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
लखनऊ।
दीपावली और छठ पर्व के मौके पर रेलवे ने दावा किया कि यात्रियों की सुविधा के लिए इस बार “12 हज़ार स्पेशल ट्रेनें” चलाई जा रही हैं। बयान सुनकर लगा कि इस बार घर लौटना आसान होगा। मगर जब मैदान में हालात देखे — स्टेशनों पर अफरातफरी, टिकट के लिए लंबी लाइनें, ठसाठस डिब्बों में सफर और यात्रियों पर लाठियाँ बरसाते सुरक्षाकर्मी — तो सवाल उठना लाजिमी था कि आखिर ये 12 हज़ार ट्रेनें गईं कहां?
टीम स्वराज इंडिया ने जब रेल मंत्री के इस दावे की गहराई से जांच की, तो पता चला कि ये “12 हज़ार ट्रेनें” नहीं बल्कि “12 हज़ार ट्रिप्स” थीं।
रेलवे के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में रोजाना करीब 13,000 से 14,000 यात्री ट्रेनें (मेल/एक्सप्रेस, पैसेंजर, उपनगरीय सहित) चलती हैं। यानी रेलवे की पूरी मौजूदा क्षमता ही इतनी है। तो भला 12 हज़ार नई ट्रेनें चलाने की बात व्यावहारिक रूप से कैसे संभव थी?
रेलवे के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने बताया “रेल मंत्री के बयान में ‘ट्रेनों’ नहीं, ‘ट्रिप्स’ की बात थी। एक ही ट्रेन कई बार चलती है और हर बार को एक ट्रिप माना जाता है। जैसे दिल्ली–पटना स्पेशल ट्रेन अगर दस बार चली, तो उसे दस ट्रिप्स गिना गया।”
आंकड़ों में खेल समझिए
पीआईबी की 20 अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट के अनुसार,
1 अक्टूबर से 15 नवंबर तक कुल 12,011 स्पेशल ट्रिप्स का लक्ष्य रखा गया था।
इससे पहले वर्ष 2024 में यह संख्या मात्र 6,556 ट्रिप्स थी।
अर्थात् इस बार ट्रिप्स की संख्या लगभग दोगुनी की गई।
रेलवे के पास कुल लगभग 10,000–11,000 रेक्स (फिजिकल ट्रेन सेट्स) हैं, जिनमें से 80–85% पहले से नियमित सेवाओं में चलते हैं। बाकी रेक्स को स्पेशल ट्रिप्स के लिए लगाया गया। कुछ ट्रेनों में अतिरिक्त कोच जोड़े गए, और छोटे रूट्स जैसे दिल्ली–मुजफ्फरपुर, मुंबई–दरभंगा पर छोटी दूरी की ट्रिप्स कराई गईं।

रेलवे मंत्रालय बताए कि फिर हंगामा क्यों?
मुद्दा यह है कि छठ पर 2–3 करोड़ लोग बिहार–यूपी लौटते हैं, जबकि इन 12,000 ट्रिप्स से सिर्फ 1.2–1.5 करोड़ यात्रियों को ही समायोजित किया जा सकता है।
बाकी यात्रियों को नियमित ट्रेनों में जगह न मिलने से वेटिंग लिस्ट 500+ तक जा पहुँची।
रेलवे की क्षमता सीमित है — ट्रैक, प्लेटफॉर्म और सिग्नलिंग सिस्टम पहले से ही ओवरलोड हैं। नतीजा — अफरातफरी, ओवरक्राउडिंग और टिकट ब्लैकिंग का बाजार।
कन्फ्यूजन या चालाकी?
मीडिया के कई हिस्सों ने बिना जांच किए “12 हज़ार ट्रेनों” का प्रचार किया।
रेलवे ने इस गलती का खंडन नहीं किया, बल्कि वाहवाही लूटने में ही संतोष किया।
जानकारों का कहना है कि यह कम्युनिकेशन मिस्टेक नहीं, बल्कि पॉलिटिकल कम्युनिकेशन का क्लासिक उदाहरण है — आंकड़ों को तकनीकी शब्दों में पेश कर भ्रम पैदा करना, ताकि जनता को लगे कि व्यवस्था अभूतपूर्व काम कर रही है।
दरअसल “12 हज़ार ट्रिप्स” हैं — यानी एक ही ट्रेन का बार-बार संचालन।

दावा गलत नहीं, मगर भ्रामक जरूर है।
रेलवे की सीमित क्षमता, भीड़ का गलत अनुमान और मीडिया की चापलूसी ने मिलकर इस पूरे सिस्टम को “झोल” में बदल दिया।
और यही है मोदी सरकार की खासियत — आंकड़ों से वाहवाही, ज़मीनी हकीकत में अव्यवस्था।


