
प्रमुख संवाददाता | स्वराज इंडिया
लखनऊ। बिहार विधानसभा चुनाव अपने अंतिम दौर में प्रवेश कर चुका है और अब उत्तर प्रदेश की तीन बड़ी राजनीतिक हस्तियों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती की एंट्री से चुनावी माहौल गरमा गया है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही खेमों ने यूपी के नेताओं की लोकप्रियता को बिहार की राजनीति में भुनाने की पूरी तैयारी कर ली है। योगी आदित्यनाथ की एंट्री से तेज हुआ एनडीए का हिंदुत्व एजेंडा
भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बिहार भेजकर एनडीए के प्रचार को नई धार दी है। योगी इन दिनों सिवान, वैशाली, भोजपुर और बक्सर जैसे जिलों में लगातार जनसभाएं कर रहे हैं। उनकी रैलियों में यूपी के विकास मॉडल, अपराध पर जीरो टॉलरेंस और बुलडोजर नीति जैसे मुद्दे गूंज रहे हैं।
रघुनाथपुर (सीवान) और शाहपुर में योगी ने आरजेडी पर तीखे हमले किए और एनडीए को कानून-व्यवस्था, रोजगार और बिजली-पानी के मोर्चे पर बेहतर विकल्प बताया। बारिश से कुछ रैलियां प्रभावित होने के बावजूद बीजेपी कार्यकर्ताओं का उत्साह चरम पर है। यूपी की सीमावर्ती बेल्ट में योगी की लोकप्रियता को बीजेपी रणनीतिक रूप से वोटों में बदलना चाहती है।
अखिलेश यादव की सक्रियता से महागठबंधन में नई ऊर्जा
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव एक नवंबर से बिहार में चुनावी मैदान में उतर रहे हैं। वे महागठबंधन के उम्मीदवारों के समर्थन में पूर्वी चंपारण, सिवान और कैमूर जिलों में कई रैलियां करेंगे।
अखिलेश की राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ साझा रैली से विपक्षी गठबंधन में नई एकजुटता का संदेश जा रहा है। उन्होंने नीतीश कुमार को ‘बीजेपी का चुनावी दूल्हा’ बताते हुए चुनावी बहस को गर्मा दिया है। सपा इस बार इंडिया गठबंधन का हिस्सा है और उसने 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। इन सीटों पर जातीय संतुलन और स्थानीय नेतृत्व को प्राथमिकता दी गई है।
अखिलेश का फोकस बिहार के युवाओं और पिछड़े वर्गों पर है, जिनके बीच वे “संवेदनशील और प्रगतिशील सरकार” का संदेश लेकर जा रहे हैं।
मायावती की तैयारी, लेकिन प्रचार में अब तक ‘साइलेंट’ मूड
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अभी तक बिहार में कोई जनसभा नहीं की है, लेकिन 6 नवंबर से उनका प्रचार अभियान शुरू होने जा रहा है। बसपा ने दो दर्जन रैलियों का शेड्यूल तैयार किया है, जो मुख्य रूप से पश्चिमी बिहार के जिलों में कैमूर, रोहतास, आरा और बक्सर में केंद्रित रहेगा।
पार्टी इस बार ‘साइलेंट वोटर’ और सीमावर्ती दलित-पिछड़े वोट बैंक पर भरोसा कर रही है। 2005 और 2010 के बाद मायावती एक बार फिर बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही हैं, लेकिन उनकी अब तक की चुप्पी से राजनीतिक हलकों में कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
राजनीतिक समीकरणों का संगम
बिहार चुनाव में इस बार यूपी की राजनीतिक छाया साफ दिख रही है। योगी आदित्यनाथ जहां एनडीए की हिंदुत्व छवि को धार दे रहे हैं, वहीं अखिलेश यादव महागठबंधन के “विकास और समानता” के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। मायावती की देर से एंट्री हालांकि समीकरणों में नई दिशा दे सकती है।
कुल मिलाकर, बिहार की राजनीति इस समय उत्तर प्रदेश के नेताओं की रणनीतियों और भाषणों से सराबोर है और इसका असर मतदान तक जारी रहने की पूरी संभावना है।


