
सरकारी और स्वतंत्र रिपोर्टों के अनुसार, अगस्त 2024 से फरवरी 2025 के बीच कम से कम 21 हिंदुओं की हत्या हुई और 152 मंदिरों पर हमले किए गए। पिछले दो महीनों में ही लूट, आगजनी और महिलाओं के उत्पीड़न की 76 से अधिक घटनाएं दर्ज की गई
अंतरराष्ट्रीय मुद्दा | विशेष रिपोर्ट
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली/ढाका।
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हो रहे हमलों ने न केवल क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ाई है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगस्त 2024 के बाद से बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में तेज़ी आई है, जिनमें हत्या, लूटपाट, मंदिरों पर हमले और महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार शामिल हैं।
सरकारी और स्वतंत्र रिपोर्टों के अनुसार, अगस्त 2024 से फरवरी 2025 के बीच कम से कम 21 हिंदुओं की हत्या हुई और 152 मंदिरों पर हमले किए गए। पिछले दो महीनों में ही लूट, आगजनी और महिलाओं के उत्पीड़न की 76 से अधिक घटनाएं दर्ज की गईं। कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है कि इस अवधि में 183 से अधिक हिंदुओं की हत्या और 281 हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं सामने आई हैं। हाल ही में दीपू दास नामक एक हिंदू युवक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या ने हालात की गंभीरता को और उजागर कर दिया। बांग्लादेशी पुलिस ने स्वयं स्वीकार किया है कि दीपू दास पर लगाए गए ईशनिंदा के आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं है।
इन घटनाओं ने बांग्लादेश में कानून-व्यवस्था के ध्वस्त होने और कट्टरपंथी तत्वों के प्रभाव बढ़ने की आशंका को बल दिया है। अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है, जिससे देश में उनकी आबादी लगातार घटने की आशंका जताई जा रही है।
भारत सरकार के सामने इस संकट से निपटने के लिए कई कूटनीतिक और रणनीतिक विकल्प मौजूद हैं। विशेषज्ञों के अनुसार भारत बांग्लादेश पर उच्चस्तरीय कूटनीतिक दबाव बना सकता है और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को द्विपक्षीय संबंधों का अहम मुद्दा बना सकता है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस विषय को उठाकर वैश्विक दबाव बनाया जा सकता है। भारत मानवीय सहायता के तहत भोजन, दवाइयों और शरण की व्यवस्था कर सकता है तथा सीमा पर सुरक्षा बढ़ाकर हिंदू शरणार्थियों को सुरक्षित सहायता प्रदान कर सकता है। आर्थिक मोर्चे पर भी भारत के पास प्रभावी साधन हैं, क्योंकि बांग्लादेश ऊर्जा, कपास, दवाइयों और खाद्यान्न के लिए काफी हद तक भारत पर निर्भर है। इन आपूर्तियों को शर्तों से जोड़कर दबाव बनाया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया पर सवाल
पूरे घटनाक्रम में अंतरराष्ट्रीय मीडिया और बड़े देशों की सीमित प्रतिक्रिया सबसे बड़ा सवाल बनकर उभरी है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हिंसा पर चिंता जताई है, लेकिन ठोस कार्रवाई अब तक सामने नहीं आई। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने बयान तो दिए, पर वे प्रतीकात्मक ही रहे। कई प्रमुख मानवाधिकार संगठनों की चुप्पी भी आलोचना के घेरे में है। विश्लेषकों का मानना है कि वैश्विक राजनीति में दोहरे मानदंड अपनाए जा रहे हैं, जहां धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप में हिंदुओं के उत्पीड़न को अपेक्षित गंभीरता नहीं मिल रही। पश्चिमी देशों के हित मुस्लिम बहुल देशों से जुड़े होने के कारण भी इस मुद्दे पर मुखरता कम देखी जा रही है। भारत पहले ही बांग्लादेश सरकार के साथ अपनी चिंताएं साझा कर चुका है और भारतीय उच्चायोग स्थिति पर नजर बनाए हुए है। हालांकि, हिंसा के लगातार जारी रहने से यह स्पष्ट है कि मौजूदा कदम पर्याप्त नहीं हैं। कूटनीति के साथ-साथ आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ की रणनीति अपनाकर ही इस संकट से निपटा जा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा केवल एक पड़ोसी देश का मुद्दा नहीं, बल्कि मानवाधिकार और सभ्यतागत मूल्यों का प्रश्न है। आने वाले समय में भारत की सक्रिय और संतुलित भूमिका ही क्षेत्र में शांति और स्थिरता का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।


