
2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल की सियासत में चल रहा बड़ा उथल-पुथल
मुस्लिम वोटरों की नाराजगी से तृणमूल में बढ़ी बेचैनी, हुमायूं कबीर ने खोल दिया नया मोर्चा
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली।
पश्चिम बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य में इस वक्त सबसे बड़ा बदलाव मुस्लिम मतदाता वर्ग की बदलती प्राथमिकताओं और बढ़ते राजनीतिक के रूप में देखा जा रहा है। राज्य की 100 से अधिक विधानसभा सीटों पर निर्णायक प्रभाव रखने वाला यह वोट बैंक अब किसी एक दल का स्थायी समर्थक न होकर अपने हितों के मुताबिक राजनीतिक फैसले लेने लगा है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस इस समय अंदरूनी खींचतान और असंतोष से जूझ रही है।
हाल ही में वक्फ कानून पर ममता बनर्जी की सहमति ने पार्टी के कई मुस्लिम नेताओं को नाराज कर दिया। मंत्रियों और विधायकों ने खुले तौर पर विरोध दर्ज कराया, जिससे तृणमूल के भीतर गहरे मतभेदों की परतें उभरने लगीं। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी तेज है कि बंगाल का मुस्लिम समुदाय अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसी मुस्लिम चेहरे को देखना चाहता है, जो उनके मुद्दों को बेहतर तरीके से समझ सके। 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले यह स्थिति ममता बनर्जी के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रही है।
इसी बीच मुर्शिदाबाद जिले से तृणमूल कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। पार्टी के वरिष्ठ मुस्लिम नेता और विधायक हुमायूं कबीर ने 6 दिसंबर को मुर्शिदाबाद में नए बाबरी मस्जिद के उद्घाटन का ऐलान कर पार्टी नेतृत्व को कठघरे में खड़ा कर दिया। तृणमूल कांग्रेस ने इसे गंभीर अनुशासनहीनता बताते हुए कबीर को तत्काल निलंबित कर दिया। लेकिन हुमायूं कबीर के तेवर नरम नहीं पड़े। उन्होंने 22 दिसंबर को अपनी नई राजनीतिक पार्टी के गठन की घोषणा कर दी, जो तृणमूल के लिए सीधा सिरदर्द माना जा रहा है।
हुमायूं कबीर का यह कदम न सिर्फ पार्टी के भीतर मुस्लिम नेताओं के असंतोष को उजागर करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि मुस्लिम नेतृत्व अब अपनी अलग राजनीतिक पहचान की तलाश में है। तृणमूल कांग्रेस वर्षों से मुस्लिम वोटरों को अपने साथ बनाए रखने की रणनीति पर काम करती रही है, लेकिन हाल के घटनाक्रम बताते हैं कि यह रणनीति अब कमजोर पड़ती दिख रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पार्टी को तुरंत मुस्लिम नेताओं और समुदाय के साथ संवाद बढ़ाना होगा, अन्यथा 2026 के चुनावों में इसका असर साफ दिखाई देगा। दूसरी ओर, मुस्लिम मतदाता अब केवल समर्थन देने तक सीमित नहीं रहना चाहते, बल्कि वे अपनी स्वयं की राजनीतिक आवाज़ को स्थापित करने की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं। कुल मिलाकर, पश्चिम बंगाल की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक एक निर्णायक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर चुका है। तृणमूल कांग्रेस के भीतर बढ़ती खींचतान, हुमायूं कबीर की बगावत और नई पार्टी की घोषणा इस बात का स्पष्ट संकेत है कि आने वाले महीनों में राज्य की सियासत बड़े बदलावों से गुजर सकती है।


