Tuesday, December 30, 2025
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साल का आखिरी चंद्र ग्रहण: पांच राशियों पर पड़ सकता है अशुभ प्रभाव

सूतक से मोक्ष तक जानें धर्म, अध्यात्म और विज्ञान का महत्व

स्वराज इंडिया धर्म अध्यात्म डेस्क
लखनऊ।
7 सितंबर की रात साल का आखिरी चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है। यह ग्रहण भारत सहित एशिया, हिंद महासागर, अंटार्कटिका, पश्चिमी प्रशांत महासागर, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में साफ-साफ दिखाई देगा। भारतीय ज्योतिष के अनुसार यह ग्रहण विशेष महत्व रखता है, क्योंकि ग्रहण के दौरान सूतक से लेकर मोक्ष काल तक कई धार्मिक नियम और परंपराएं मान्य हैं। वहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस घटना को बेहद अहम माना जाता है।

सूतक से मोक्ष तक का समय

सूतक प्रारंभ: दोपहर 12:59 बजे

ग्रहण का प्रारंभ (स्पर्श काल): रात 9:56 बजे

ग्रहण का मध्य काल: रात 11:43 बजे

मोक्ष (ग्रहण समाप्ति): रात 1:29 बजे

मोक्ष के बाद दान-पुण्य का विधान है। परंपरागत मान्यता के अनुसार तिल, अनाज, वस्त्र और कंबल आदि का दान करना शुभ माना जाता है।


किन राशियों पर पड़ेगा अशुभ प्रभाव

पंडित चंद्र गोपाल पौराणिक के अनुसार यह ग्रहण सबसे ज्यादा कुंभ राशि वालों के लिए अशुभ फलदायी होगा। इसके अलावा मेष, वृषभ, कन्या और धनु राशि के जातकों को भी सावधान रहने की सलाह दी गई है। अन्य राशियों के लिए यह ग्रहण तटस्थ या शुभ फलदायी रहेगा।


धार्मिक मान्यताएँ और परंपराएँ

ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श, भोजन और पूजा सामग्री का उपयोग वर्जित माना जाता है। इसी कारण मंदिरों के पट बंद कर दिए जाते हैं। इस दौरान मंत्र जाप, ध्यान, रामायण पाठ और जप-तप करना न केवल अनुमत है बल्कि शुभ भी माना जाता है। ग्रहण काल में बनाए गए माला, तुलसी दल, कुश और तिल का विशेष महत्व होता है।


तुलसी, कुश और तिल का महत्व

ग्रहण काल में भोजन और शरीर को सुरक्षित रखने के लिए तुलसी और कुश को भोजन में डाला जाता है।

तुलसी: इसमें पारे की मात्रा पाई जाती है, जो हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देती है।

कुश: इसे पाचन और फफूंद नाशक माना जाता है।

तिल: त्रिदोष नाशक और गर्म तासीर वाला होने से यह शरीर से विजातीय तत्वों को नष्ट करता है। स्नान के समय तिल का प्रयोग इसलिए किया जाता है ताकि शरीर पर पड़े हानिकारक प्रभाव दूर हो सकें।


विज्ञान की नजर में चंद्र ग्रहण

खगोलशास्त्रियों के अनुसार चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है। इस स्थिति में सूर्य की किरणें चंद्रमा तक नहीं पहुंच पातीं और पृथ्वी की छाया उस पर पड़ती है।

समुद्र में उठने वाले ज्वार-भाटा भी इस घटना से प्रभावित होते हैं।

वैज्ञानिक मानते हैं कि ग्रहण के दौरान निकलने वाली किरणें भोजन को प्रभावित करती हैं, जिससे उसमें बैक्टीरिया और फफूंद उत्पन्न हो सकते हैं। यही कारण है कि परंपरा में भोजन में तुलसी और कुश डालने की प्रथा शुरू हुई।


सनातन धर्म की वैज्ञानिकता

ग्रहण से जुड़े धार्मिक नियम भले ही आस्था और परंपरा से जुड़े लगते हों, लेकिन उनके पीछे गहरा वैज्ञानिक आधार भी है। तुलसी, कुश और तिल का उपयोग जहां स्वास्थ्य और स्वच्छता की रक्षा करता है, वहीं ध्यान, मंत्र-जाप और उपवास मन और शरीर की शुद्धि के लिए लाभकारी माने जाते हैं।
इस तरह साल का आखिरी चंद्र ग्रहण केवल एक खगोलीय घटना ही नहीं है, बल्कि धर्म, अध्यात्म और विज्ञान के गहरे संबंध को भी दर्शाता है।

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