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अनूप अवस्थी स्वराज इंडिया/लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाल के दिनों में एक अप्रत्याशित घटनाक्रम ने सभी का ध्यान खींचा है। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता, पूर्व मंत्री और रामपुर से कई बार विधायक व सांसद रहे आज़म खान को हाल ही में अदालत से जमानत मिलने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने उनकी वाई श्रेणी की सुरक्षा बहाल कर दी। यह कदम न केवल प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, बल्कि इसके राजनीतिक मायनों को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है।बीते चार-पांच सालों में आज़म खान पर जमीन कब्जे, फर्जी दस्तावेज, सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जे और कई अन्य मामलों में मुकदमे दर्ज हुए। उन्हें एक के बाद एक जेल का सामना करना पड़ा। योगी सरकार पर विपक्ष ने लगातार यह आरोप लगाया कि उसने राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते कार्रवाई की, लेकिन अब वही सरकार उनकी सुरक्षा बहाल कर रही है — यह बदलाव अपने आप में कई संकेत समेटे हुए है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह निर्णय केवल “प्रशासनिक विवेक” का परिणाम नहीं है, बल्कि एक सटीक राजनीतिक संदेश भी देता है। दरअसल, योगी की राजनीति को हमेशा एक दृढ़, निर्णायक और स्पष्ट विचारधारा वाली राजनीति के रूप में देखा गया है। लेकिन समय-समय पर उन्होंने यह भी दिखाया है कि वे केवल टकराव की राह नहीं चलते, बल्कि रणनीतिक संवाद और सॉफ्ट बैलेंस की नीति भी अपनाते हैं।उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम मतदाता लंबे समय से भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह भलीभांति पता है कि किसी समुदाय का भरोसा एक दिन में नहीं जीता जा सकता, लेकिन संवेदनशीलता दिखाकर संदेश अवश्य दिया जा सकता है। आज़म खान जैसे प्रभावशाली मुस्लिम नेता को राहत देना भाजपा की उसी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है, जिसके तहत पार्टी समाज के हर वर्ग तक संवाद का रास्ता खोलना चाहती है।राजनीतिक दृष्टि से यह कदम समाजवादी पार्टी के भीतर भी हलचल पैदा करने वाला है।

आज़म खान और अखिलेश यादव के रिश्तों में पहले से खटास रही है, और योगी सरकार का यह “सौम्य” रुख सपा के भीतर दरार को और गहरा कर सकता है। इस तरह यह निर्णय भाजपा के लिए डबल बेनिफिट साबित हो सकता है — एक तरफ वह “कानून के शासन” की छवि बनाए रखेगी, दूसरी तरफ विपक्षी एकता को कमजोर कर सकेगी।योगी आदित्यनाथ की राजनीति की सबसे बड़ी विशेषता यही मानी जाती है कि वे सख्ती और संवेदनशीलता दोनों का संतुलन साधने में माहिर हैं। रामपुर जैसे इलाकों में जहां आज़म खान का प्रभाव अब भी कायम है, वहां सुरक्षा बहाली का यह निर्णय सरकार की व्यावहारिक राजनीति और दूरदृष्टि दोनों को दर्शाता है।आगामी विधानसभा (2027) और लोकसभा (2029) चुनावों के मद्देनज़र भाजपा पहले से ही अपने सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को पुनर्गठित करने में जुटी है। ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह निर्णय एक संकेत भी है कि भाजपा अब “सर्वसमावेशी राजनीति” के नए आयाम तलाश रही है।निष्कर्षतः, आज़म खान को राहत देना न तो सिर्फ अदालती प्रक्रिया का परिणाम है, न ही केवल प्रशासनिक विवशता। यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक दूरदृष्टि, सधे हुए संतुलन और रणनीतिक सोच का उदाहरण है — जो बताता है कि वे विपक्ष को कमजोर करने और भाजपा की सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ाने, दोनों मोर्चों पर एक साथ काम कर रहे हैं।उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि योगी आदित्यनाथ अब केवल “कठोर प्रशासक” नहीं, बल्कि एक रणनीतिक राजनीतिज्ञ के रूप में भी अपनी भूमिका को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं।—


