
- सार्क से SCO तक : पड़ोस खोकर चीन-रूस के मंच पर नई रणनीति
- विदेश नीति में इवेंट पॉलिटिक्स हावी, दीर्घकालिक विज़न पर सवाल
- SCO में अवसर भी, लेकिन चीन-पाक की मौजूदगी भारत के लिए चुनौती
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) आज एशिया का एक बड़ा मंच है, लेकिन इसकी जड़ें चीन के प्रभाव में गहराई तक जमी हुई हैं। यह वही SCO है, जिसे बीजिंग ने क्षेत्रीय संतुलन साधने और अपने प्रभुत्व को बढ़ाने के लिए खड़ा किया। दूसरी ओर, भारत ने 1985 में सार्क (SAARC) और बाद में साफ्टा (SAFTA) जैसे संगठनों की पहल कर दक्षिण एशियाई सहयोग और फ्री ट्रेड का रास्ता खोला था। कभी सार्क भारत का “पॉकेट ऑर्गनाइजेशन” माना जाता था, लेकिन बीते वर्षों में यह ढांचा कमजोर होता गया और चीन की पकड़ वाले मंचों की ओर झुकाव बढ़ता चला गया।
प्रधानमंत्री मोदी के पहले शपथ ग्रहण में जब सारे सार्क देशों के प्रमुख बुलाए गए थे तो उम्मीद जगी थी कि सार्क और साफ्टा को नई ताकत मिलेगी। लेकिन घरेलू राजनीति और पड़ोसी देशों से टकराव ने इस विजन को खोखला कर दिया। कभी नेपाल पर ब्लॉकेड, कभी बांग्लादेश को घुसपैठिया बताना, कभी मालदीव की आलोचना—इन सबने भारत की पारंपरिक क्षेत्रीय नेतृत्व क्षमता को कमजोर कर दिया।

रणनीतिक दृष्टि से
भारत आज SCO में तो “महत्वपूर्ण आवाज़” है, लेकिन यह भी सच है कि इस मंच पर चीन और रूस जैसी ताकतों का वर्चस्व है। पाकिस्तान की मौजूदगी और चीन के साथ जारी तनाव भारत के लिए अतिरिक्त चुनौतियाँ खड़ी करते हैं। बावजूद इसके, SCO में भारत की भागीदारी ऊर्जा, कनेक्टिविटी, आतंकवाद विरोधी सहयोग और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से अहम है। एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और विशाल जनसंख्या वाला देश होने के कारण भारत को नज़रअंदाज़ करना किसी के लिए संभव नहीं है। यही कारण है कि SCO देश भारत को एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में देखते हैं।
भारत की सॉफ्ट पावर—योग, आयुर्वेद, आईटी सेक्टर और सांस्कृतिक प्रभाव—ने SCO देशों में सकारात्मक छवि बनाई है। लेकिन सवाल यह है कि जब भारत QUAD में चीन विरोधी धुरी का हिस्सा है, BRICS में भी उसके साथ बैठा है और SCO में भी शामिल है, तो विदेश नीति की स्पष्ट दिशा क्या है?

राष्ट्रीय नीति व संप्रभुता की दृष्टि से आज ज़रूरत है कि भारत अपनी विदेश नीति को दृढ़, स्वतंत्र और राष्ट्रहित केंद्रित बनाए। केवल इवेंट-आधारित कूटनीति या अमेरिका-चीन के बीच संतुलन साधने की कोशिश पर्याप्त नहीं है।
👉 अगर हम सार्क और साफ्टा को मज़बूत रखते, तो दक्षिण एशिया में हमारी नेतृत्व भूमिका और भी स्पष्ट होती।
👉 SCO में शामिल होकर अवसर तो मिलते हैं, लेकिन चीन के प्रभाव और पाकिस्तान की उपस्थिति भारत के लिए कूटनीतिक दबाव भी बनाते हैं।
👉 संप्रभुता और स्वायत्त विदेश नीति तभी मज़बूत होगी, जब हम अपने पड़ोसियों के साथ सम्मानजनक संबंध बनाकर, क्षेत्रीय संगठन को मज़बूत करेंगे और विश्व मंच पर अपनी स्वतंत्र आवाज़ दर्ज करेंगे।
स्वराज इंडिया का मानना है कि
भारत को विदेश नीति में “इवेंट पॉलिटिक्स” से ऊपर उठकर, दीर्घकालिक रणनीति पर ध्यान देना होगा। पड़ोसी देशों से विश्वास बहाली, सार्क-साफ्टा जैसे मंचों को मज़बूत करना और राष्ट्रहित में स्वतंत्र निर्णय लेना ही भारत की संप्रभुता और वैश्विक नेतृत्व की असली पहचान बनेगी।
