
गमछे से लेकर जनभावना तक, कैसे बनी एनडीए की ऐतिहासिक जीत की जमीन
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
पटना।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 सिर्फ सीटों की जंग नहीं थे, बल्कि यह इस बात का मुकाबला भी था कि कौन-सा नेतृत्व जनता की नब्ज को गहराई से पकड़ता है। इस बार मैदान में उतरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ रैलियों की संख्या से, बल्कि अपनी शैली, प्रतीकों के इस्तेमाल और स्थानीय भावनाओं को छूने वाली रणनीति से चुनाव को पूरी तरह अपने पक्ष में मोड़ दिया। नतीजा—एनडीए को मिली बंपर जीत, जिसने बिहार की सियासत को नया संतुलन दे दिया।
बिहार में एनडीए की बंपर जीत का आधार सिर्फ संगठन की ताकत नहीं था, बल्कि नरेंद्र मोदी की वह राजनीतिक शैली थी जो भावनाओं, प्रतीकों और नेतृत्व के भरोसे पर खड़ी है।
गमछा लहराने जैसे छोटे दृश्य भी बड़े राजनीतिक संदेश बन गए—अपनापन, जुड़ाव और स्थानीय सम्मान।
मोदी की यह रणनीति बताती है कि आधुनिक राजनीति में तकनीक और भाषण जितने महत्वपूर्ण हैं, उतनी ही अहम है सांस्कृतिक समझ और जनभावना को पढ़ने की क्षमता।
बिहार में मोदी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि राजनीति केवल नीतियों का खेल नहीं, बल्कि प्रतीकों और जनता के दिल तक पहुंचने की कला भी है।

गमछा बना पहचान और संदेश,जनता से सीधा जुड़ाव
प्रधानमंत्री की चुनावी शैली में सबसे चर्चित रहा उनका ‘गमछा संवाद’। मुजफ्फरपुर से लेकर बेगूसराय और पटना तक हर बड़े कार्यक्रम में मोदी ने गमछा लहराकर जनता को संबोधित किया। यह सिर्फ अभिवादन नहीं था, बल्कि एक संदेश सत्ता में होने के बावजूद मैं आपके बीच का हूं। 14 नवंबर को दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय में मिली ऐतिहासिक जीत के जश्न के दौरान कार से उतरते ही मोदी का जोरदार गमछा लहराना इस चुनावी माहौल की निर्णायक तस्वीर बन गया। यह क्षण सोशल मीडिया पर छा गया और बिहार की जनता ने इसे अपने सम्मान से जोड़ा।
बिहार चुनाव में पीएम मोदी का फोकस सिर्फ भाषणों पर नहीं, बल्कि सांस्कृतिक जुड़ाव पर रहा।
मधुबनी प्रिंट वाला बिहार का लोक गमछा,
क्षेत्रीय बोली का सहज इस्तेमाल,
किसानों और श्रमिकों की पहचान से जुड़े प्रतीकों पर जोर—
इन सभी ने यह संदेश दिया कि प्रधानमंत्री न केवल राष्ट्रीय नेता हैं, बल्कि स्थानीय भावनाओं को समझने और सम्मान देने वाले नेता भी हैं। मोदी के इस अंदाज़ ने उन वोटरों को भी प्रभावित किया जो परंपरागत रूप से किसी पार्टी विशेष के साथ नहीं थे।
एनडीए की जीत में मोदी की व्यक्तिगत विश्वसनीयता सबसे निर्णायक कारक साबित हुई। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने बार-बार विकास, रोजगार और स्थिर शासन का मॉडल सामने रखा।
‘डबल इंजन सरकार’ को बिहार के संदर्भ में जिस मजबूती से उन्होंने पेश किया, वह मतदाताओं की उम्मीदों से मेल खाती दिखी।
इसके साथ ही नीतीश कुमार को दोबारा मुख्यमंत्री पद पर बनाए रखने का बीजेपी का निर्णय भी मोदी की रणनीति का बड़ा हिस्सा था—स्थिरता का संदेश और गठबंधन की मजबूती। पटना में 20 नवंबर को हुए शपथ ग्रहण समारोह में मोदी का गमछा लहराना इसी स्थिरता के उत्सव का दृश्य था।
सोशल मीडिया और दृश्य-राजनीति पर पकड़
इस चुनाव में एक और दिलचस्प पहलू रहा—मोदी की ‘विजुअल पॉलिटिक्स’।
गमछा लहराते हुए वीडियो क्लिप्स, भीड़ का उत्साह, मंच से भावनात्मक संवाद—यह सब सोशल मीडिया पर लाखों लोगों तक पहुंचा।
राजनीति के इस दौर में दृश्य शब्दों से ज्यादा असर करते हैं, और मोदी इसमें महारथी साबित हुए।
ग्राउंड मैनेजमेंट का कमाल
मोदी की रैलियों की संख्या भले ही सीमित रही हो, लेकिन हर रैली रणनीतिक रूप से चुनिंदा सीटों पर केंद्रित थी।
बेगूसराय के आंता–सिमरिया पुल उद्घाटन से लेकर मुजफ्फरपुर और पटना के mega-events तक, भाजपा की चुनावी टीम ने यह सुनिश्चित किया कि मोदी की मौजूदगी का अधिकतम राजनीतिक लाभ मिले।
गांव–गांव में पार्टी कैडर ने संदेश फैलाया—“जब मोदी का गमछा उठता है, बिहार की उम्मीदें जगती हैं।”


