Thursday, September 4, 2025
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हाईकोर्ट ने पूछा, मनरेगा घोटाले का दोषी वीडीओ कैसे हुआ बहाल ?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चित्रकूट डीएम और मुख्य सचिव को भेजा नोटिस

स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
प्रयागराज/चित्रकूट।
मनरेगा में हुए करोड़ों के गबन और धांधली पर सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन चित्रकूट जिले का मामला यह बताने के लिए काफी है कि भ्रष्टाचार में फंसे अधिकारियों को किस तरह संरक्षण मिलता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चित्रकूट के जिलाधिकारी शिवशरण अप्पा और उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है।
रामनगर विकासखंड में तैनात ग्राम विकास अधिकारी (VDO) आलोक सिंह पर मनरेगा योजना में 11 लाख रुपये के घोटाले का गंभीर आरोप लगा था। खंड विकास अधिकारी (BDO) की जांच में उन्हें दोषी पाया गया और तत्काल निलंबन के बाद स्थानांतरण कर पहाड़ी विकासखंड भेज दिया गया। लेकिन गड़बड़ी यहीं खत्म नहीं हुई। गाइडलाइन के मुताबिक ऐसी स्थिति में एफआईआर दर्ज कराना और वसूली की कार्रवाई जरूरी थी, मगर जिला प्रशासन ने न तो मुकदमा दर्ज कराया और न ही किसी तरह की कानूनी कार्यवाही की। हैरानी की बात यह है कि कुछ ही महीनों बाद आलोक सिंह को बहाल कर फिर से उसी रामनगर विकासखंड में तैनात कर दिया गया, जहाँ से उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में हटाया गया था।

ग्रामीणों की शिकायत अनसुनी

ग्रामीणों का आरोप है कि मनरेगा के तहत फर्जी बिल, मजदूरों की हाजिरी में हेराफेरी और भुगतान में अनियमितताओं से लाखों रुपये का गबन किया गया। जब लोगों ने इस मामले की शिकायत जिलाधिकारी से की और साक्ष्य भी सौंपे, तब भी अधिकारियों ने कार्रवाई से परहेज किया। पीड़ित ग्रामीणों का कहना है कि बार-बार प्रार्थना पत्र देने और सबूत उपलब्ध कराने के बावजूद न तो दोषी VDO के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और न ही उनकी तैनाती रोकी गई। अंततः शिकायतकर्ताओं को न्याय की उम्मीद में इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

हाईकोर्ट का सख्त रुख

हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया इस पूरे मामले को गंभीर मानते हुए चित्रकूट के जिलाधिकारी और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने पूछा है कि जब जांच में दोष सिद्ध हो चुका था तो एफआईआर और आगे की कार्रवाई क्यों नहीं की गई और नियमों के खिलाफ जाकर आरोपी अधिकारी को उसी पद पर क्यों बहाल कर दिया गया।

बड़ा सवाल – भ्रष्टाचार पर पर्दादारी क्यों?

यह प्रकरण कई सवाल खड़े करता है—

आखिर एक दोषी पाए गए अधिकारी को दोबारा उसी जगह क्यों तैनात किया गया? नियमों के विपरीत एफआईआर दर्ज करने से प्रशासन ने परहेज क्यों किया? क्या जिले के आला अधिकारियों ने जानबूझकर भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश की?
गांवों में गुस्सा है कि जिस अधिकारी पर सार्वजनिक धन के गबन का आरोप है, वही फिर से विकास योजनाओं की जिम्मेदारी संभाल रहा है। यह न केवल नैतिकता पर सवाल है, बल्कि सरकारी मशीनरी की विश्वसनीयता को भी संदेहास्पद बनाता है। हाईकोर्ट की सख्ती से ग्रामीणों को उम्मीद जगी है कि अब इस मामले में ठोस कार्रवाई होगी और दोषी को सज़ा मिलेगी।

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