
वृंदावन में दिखा अद्भुत आध्यात्मिक संगम, जब दो संतों का मिलन बना सनातन एकता का संदेश
स्वराज इंडिया न्यूज़ ब्यूरो
मथुरा/वृंदावन।
वृंदावन की पवित्र धरा पर आज ऐसा दृश्य देखने को मिला जिसने पूरे सनातन समाज का हृदय स्पंदित कर दिया। श्रीराधा केलिकुंज आश्रम में जब वैष्णव संप्रदाय के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद बाबा और उदासीन संप्रदाय के पूज्य कार्ष्णि पीठाधीश्वर गुरुशरणानंद महाराज आमने-सामने आए, तो वातावरण भावविभोर हो उठा।जैसे ही गुरुशरणानंद महाराज सुबह आठ बजे संत प्रेमानंद से मिलने पहुंचे, दोनों संतों के मिलन का दृश्य अद्भुत अध्यात्मिक संगम में बदल गया। दोनों ही एक-दूसरे को देखकर भावुक हो उठे, आंखें नम हुईं और फिर दोनों गले मिले — मानो वर्षों बाद दो भाई एक-दूसरे से मिल रहे हों।संत प्रेमानंद बाबा स्वयं द्वार पर जाकर गुरुशरणानंद महाराज का स्वागत करने पहुंचे और साष्टांग प्रणाम किया। गुरुशरणानंद ने भी उन्हें स्नेहपूर्वक उठाकर गले लगाया। इसके बाद प्रेमानंद बाबा ने अपने आसन पर गुरुशरणानंद महाराज को आदरपूर्वक बिठाया और स्वयं नीचे आसन लगाकर बैठ गए।

उन्होंने अपने हाथों से गुरुशरणानंद महाराज के चरण धोए, चंदन लगाया और आरती उतारी।गुरुशरणानंद महाराज ने कहा— “आप युवाओं में सनातन धर्म के प्रति जो जागृति फैला रहे हैं, वह अद्भुत है। ईश्वर आपको दीर्घायु करें और समाज को ऐसे ही मार्गदर्शन देते रहें।”इस पर संत प्रेमानंद ने विनम्रता से उत्तर दिया— “जब तक श्रीजी की इच्छा रहेगी, तब तक यही काया सेवा करती रहेगी।”इस भावनात्मक और आध्यात्मिक क्षण में उपस्थित सभी संतों और भक्तों की आंखें श्रद्धा से नम हो गईं। दोनों महापुरुषों के बीच यह मिलन केवल दो परंपराओं का नहीं, बल्कि सनातन एकता, प्रेम और परस्पर सम्मान का जीवंत उदाहरण बन गया।

जब गुरुशरणानंद महाराज जाने लगे, तो संत प्रेमानंद ने मुस्कुराते हुए कहा— “बड़ा असंभव है आपको लौटने की अनुमति देना, आज आश्रम में आपका आगमन स्वयं श्रीजी की कृपा है।”वृंदावन के संत प्रेमानंद बाबा ने अपने आचरण से एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि सच्चा संत वही है जो अहंकार नहीं, प्रेम और समर्पण से समाज को जोड़ता है। यह दृश्य था सनातन की उस आत्मा का — जहां पंथ अलग हो सकते हैं, लेकिन उद्देश्य एक ही है: प्रेम, सेवा और एकता।



