Tuesday, December 30, 2025
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स्वच्छ भारत अभियान की हकीकत: यूपी में करोड़ों की लागत से बने RRC केंद्र बन गए वीरान ढांचे

"ग्राम पंचायतों में लाखों रुपये की लागत से बने RRC केंद्र आज वीरान पड़े हैं — न कचरा पहुंच रहा, न कोई प्रबंधन हो रहा; सरकारी धन की खुली बर्बादी।"

लखनऊ/स्वराज इंडिया ब्यूरो

उत्तर प्रदेश में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत ग्राम पंचायतों में गीले और सूखे कचरे के वैज्ञानिक निस्तारण के लिए Resource Recovery Center (RRC) यानी संसाधन पुनर्प्राप्ति केंद्र बनाए गए हैं। इन केंद्रों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को कारगर बनाने और स्वच्छता अभियान को मजबूती देने के उद्देश्य से बनाया गया था। लेकिन हकीकत यह है कि ये केंद्र धरातल पर केवल वीरान और बेकार पड़ी इमारतों के रूप में खड़े हैं। न तो यहां कचरा पहुंच रहा है, न ही कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनाई जा रही है। यह एक बड़ी सरकारी योजना की असफलता और करोड़ों रुपये की सार्वजनिक संपत्ति की बर्बादी का उदाहरण बन चुकी है।

क्या है RRC केंद्र और क्यों बनाए गए थे?

RRC केंद्रों का निर्माण इसलिए किया गया था ताकि गांवों में उत्पन्न होने वाले गीले (जैसे रसोई का कचरा, सब्जियों के अवशेष)और सूखे (जैसे प्लास्टिक, कागज, धातु) कचरे को अलग-अलग करके प्रोसेस किया जा सके। इस कचरे को रीसायकल, कम्पोस्ट या सुरक्षित तरीके से नष्ट करने की व्यवस्था इन केंद्रों के जरिए होनी थी।

सरकार ने कितनी राशि खर्च की?

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) फेज-2 के तहत केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर उत्तर प्रदेश के हर ग्राम पंचायत को RRC केंद्र निर्माण के लिए राशि जारी की थी:

प्रति RRC केंद्र निर्माण की औसत लागत: ₹5 लाख से ₹10 लाख

उत्तर प्रदेश में लगभग 58,000 ग्राम पंचायतें हैं।

राज्य स्तर पर इन केंद्रों पर अनुमानित ₹2,000 करोड़ से अधिक की राशि खर्च की गई है।

हर पंचायत को केंद्र व राज्य की संयुक्त हिस्सेदारी में ₹4.5 लाख से ₹6 लाख तक की राशि स्वीकृत की गई।

(नोट: आंकड़े राज्य ग्रामीण विकास विभाग की रिपोर्टों और CAG के पर्यवेक्षण रिपोर्ट पर आधारित हैं।)

जमीनी हकीकत: खड़े हैं पर उपयोग नहीं हो रहा

स्वराज इंडिया की पड़ताल में पता चला है कि:

अधिकतर ग्राम पंचायतों में बने RRC केंद्रों में कचरे का कोई निस्तारण कार्य नहीं हो रहा

इन भवनों में ताले लगे हैं, कई जगहों पर जानवरों का बसेरा, तो कहीं-कहीं अवैध कब्जे की स्थिति है।

कई पंचायत सचिव और ग्राम प्रधानों से बात करने पर उन्होंने स्वीकार किया कि “हमारे पास न तो प्रशिक्षित कर्मचारी हैं, न ही कोई कचरा प्रबंधन की व्यवस्था”।

जनता का सवाल: जब उपयोग नहीं होना था, तो बनाए क्यों?

गांव के लोगों में भी सवाल उठने लगे हैं कि जब न तो कोई संग्रह व्यवस्था है, न निस्तारण की तकनीक, तो ये करोड़ों रुपये खर्च करके ईंट-पत्थर के ढांचे क्यों खड़े किए गए?

कहां चूक गई सरकार?

कोई संचालन और रख-रखाव योजना नहीं

स्थानीय प्रशिक्षण और जनजागरूकता का अभाव

ग्राम स्तर पर निगरानी समिति निष्क्रिय

RRC केंद्रों के उपयोग की कोई पारदर्शी रिपोर्टिंग नहीं

निष्कर्ष: ढांचागत विकास बिना क्रियान्वयन केवल बर्बादी है

स्वच्छ भारत अभियान को सफल बताने के लिए दावे तो बड़े-बड़े किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि योजना के लिए खर्च की गई हजारों करोड़ की राशि व्यर्थ जा रही है। जब तक इन केंद्रों को चालू नहीं किया जाता और ग्राम स्तर पर एक संगठित कचरा प्रबंधन प्रणाली लागू नहीं होती, तब तक यह सरकारी धन की बर्बादी बनी रहेगी।

हमारी मांग:

स्वराज इंडिया न्यूज़ सरकार से मांग करता है कि:

1. हर RRC केंद्र की प्रगति और उपयोगिता पर सार्वजनिक रिपोर्ट जारी की जाए।

2. इन केंद्रों को सक्रिय करने के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति, संसाधन और स्थानीय निगरानी तंत्र विकसित किया जाए।

3. बर्बाद हो रही सार्वजनिक संपत्ति की जिम्मेदारी तय की जाए।

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