
वोटर लिस्ट बनी सियासी रणभूमि, लगातार विपक्ष लगा रहा आरोप
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो/लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (एसआईआर) को लेकर तेज सियासी घमासान में उलझ गई है। तकनीकी प्रक्रिया मानी जाने वाली एसआईआर अब 2027 के विधानसभा चुनाव की बुनियाद बनती दिख रही है। एक ओर चुनाव आयोग इसे नियमित और जरूरी कवायद बता रहा है, तो दूसरी ओर सत्तापक्ष और विपक्ष अपने-अपने दावों और आशंकाओं के जरिए इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना चुके हैं।
एसआईआर की शुरुआत 1 नवंबर 2025 से हुई। जनवरी 2025 की मतदाता सूची के अनुसार प्रदेश में 15.44 करोड़ मतदाता दर्ज थे। इस प्रक्रिया का उद्देश्य मृत, स्थानांतरित, दोहरी प्रविष्टियों और फर्जी नामों को हटाने के साथ-साथ नए योग्य मतदाताओं को जोड़ना है। इसके लिए बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के जरिए घर-घर सत्यापन कराया जा रहा है। विवाद तब गहराया जब 14 दिसंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि एसआईआर के बाद प्रदेश की मतदाता सूची से करीब चार करोड़ नाम हट सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इनमें से 85 से 90 प्रतिशत नाम बीजेपी समर्थकों के हो सकते हैं। इस बयान के बाद सियासी हलकों में हलचल तेज हो गई और इसके संभावित राजनीतिक असर पर बहस शुरू हो गई। हालांकि, पार्टी के भीतर से ही अलग स्वर सुनाई दिए। 17 दिसंबर को पूर्व बीजेपी सांसद सुब्रत पाठक ने कहा कि कन्नौज लोकसभा क्षेत्र की तीन विधानसभा सीटों में ही करीब तीन लाख नाम कट सकते हैं और ये ज्यादातर समाजवादी पार्टी के वोटर होंगे। मुख्यमंत्री और पार्टी नेता के परस्पर विरोधी दावों ने एसआईआर को लेकर भ्रम और बढ़ा दिया। विपक्ष ने इन बयानों को हाथों-हाथ लिया। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा कि अगर चार करोड़ नामों में से 85 प्रतिशत बीजेपी के हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि बीजेपी के साढ़े तीन करोड़ वोटर फर्जी थे। उन्होंने चुनाव आयोग से पूरी प्रक्रिया की निष्पक्ष जांच की मांग की। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी आरोप लगाया कि एसआईआर की आड़ में गरीब, मजदूर और अल्पसंख्यक तबकों के वोट काटे जा सकते हैं। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि एसआईआर पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया है और किसी भी नाम को हटाने से पहले नोटिस और अपील का मौका दिया जाता है। आयोग के अनुसार ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जनवरी 2026 में जारी होगी, जबकि अंतिम सूची फरवरी 2026 में प्रकाशित की जाएगी। तब तक किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतदाता सूची में बदलाव का असली असर इस बात पर निर्भर करेगा कि किन इलाकों और किन सामाजिक वर्गों के नाम सूची से बाहर होते हैं या नए जुड़ते हैं। फिलहाल इतना तय है कि एसआईआर ने 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है और आने वाले महीनों में वोटर लिस्ट सियासत का सबसे बड़ा हथियार बनी रहेगी।



