
पहले चरण में जातीय समीकरणों और स्थानीय प्रभाव का मुकाबला दिखेगा
इस चुनाव में नीतीश और तेजस्वी की साख दांव पर
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो/पटना
बिहार की सियासत अपने चरम पर है। 6 नवंबर को राज्य की दिशा तय करने वाला पहला चरण होने जा रहा है, जिसमें 18 जिलों की 121 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। यह केवल चुनावी प्रक्रिया का पहला पड़ाव नहीं, बल्कि सत्ता की नींव रखे जाने वाला निर्णायक मोड़ है। करीब 3 करोड़ 75 लाख मतदाता 1314 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे। आंकड़े बता रहे हैं कि इस बार मुकाबला पहले से कहीं ज्यादा कड़ा, रोचक और निर्णायक होगा।
पहले चरण में मिथिलांचल, कोसी, मुंगेर और भोजपुर बेल्ट के वे इलाके शामिल हैं जहां राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों और स्थानीय प्रभावशाली चेहरों पर टिकी रही है। इस बार भी यही तस्वीर है। जेडीयू, आरजेडी, भाजपा, कांग्रेस और वाम दलों के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है।
कुल उम्मीदवारों में 122 महिलाएं हैं, जो बिहार की राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भूमिका का संकेत देती हैं।
गठबंधनों की रणनीति और अंदरूनी संघर्ष
पहले चरण में एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है, लेकिन दोनों गठबंधनों के भीतर भी खींचतान जारी है।
आरजेडी 72 सीटों पर, कांग्रेस 24 पर, सीपीआई माले 14 पर, सीपीआई और वीआईपी 6-6 पर, सीपीएम 3 पर और इंडियन इंक्लूसिव पार्टी 2 सीटों पर मैदान में है। जेडीयू 57, भाजपा 48, एलजेपी (रामविलास) 13, आरएलएम 2 और हम 1 सीट पर चुनाव लड़ रही है। इसके अलावा प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी 119 सीटों पर और एआईएमआईएम 8 सीटों पर किस्मत आजमा रही है।
उम्मीदवारों की छवि और अपराध की हकीकत
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, पहले चरण में करीब 32% उम्मीदवार आपराधिक मामलों में आरोपी हैं, जिनमें 20% पर गंभीर धाराओं के केस हैं। यह बिहार की राजनीति की वह हकीकत है, जहां प्रभाव, अपराध और सत्ता एक-दूसरे के पूरक बन चुके हैं।
2020 में इन 121 सीटों पर महागठबंधन ने 61 और एनडीए ने 59 सीटें जीती थीं।
आरजेडी ने 42, भाजपा ने 32, जेडीयू ने 23, कांग्रेस ने 8, माले ने 7, वीआईपी ने 4 और सीपीआई-सीपीएम ने दो-दो सीटें जीती थीं।
इस बार तेजस्वी यादव के लिए बढ़त बनाए रखना और नीतीश कुमार के लिए जनाधार वापस पाना बड़ी चुनौती है।
यह एक चुनाव के साथ नीतीश की अग्निपरीक्षा, तेजस्वी की उम्मीदें
पहले चरण में जेडीयू के 57 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें से 36 पर आरजेडी से, 13 पर कांग्रेस से और 7 पर माले से सीधी टक्कर है।
2020 में जेडीयू के 43 विजेताओं में से 23 इसी चरण की सीटों से आए थे। अगर इस बार वही सीटें डगमगाईं, तो नीतीश की सत्ता भी खतरे में पड़ सकती है।
वहीं तेजस्वी यादव के लिए यह चरण सत्ता की ओर पहला कदम है। वे राघोपुर से मैदान में हैं और पूरे गठबंधन को एकजुट रखकर जीत की राह बनाना चाहते हैं।
16 मंत्रियों की किस्मत दांव पर
पहले चरण में नीतीश सरकार के 16 मंत्री मैदान में हैं — जेडीयू के 5 और भाजपा के 11।
मुख्य चेहरों में डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी (तारापुर), डिप्टी सीएम विजय सिन्हा (लखीसराय), स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे (सीवान), पर्यावरण मंत्री सुनील कुमार (बिहारशरीफ) और ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार (नालंदा) शामिल हैं।
भाजपा अब जेडीयू पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहती। नीतीश सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर की चर्चा भी है।
वहीं जन सुराज पार्टी और एआईएमआईएम जैसे नए दल वोटों के बिखराव की वजह बन सकते हैं, जो नतीजों पर निर्णायक असर डालेंगे।
जनता के मुद्दे और राजनीतिक संदेश समझिए
बेरोजगारी, शिक्षा, महंगाई और कानून-व्यवस्था इस बार के चुनावी विमर्श के केंद्र में हैं।
तेजस्वी यादव युवाओं को रोजगार और बदलाव का वादा कर रहे हैं, जबकि नीतीश कुमार सुशासन और विकास की छवि को दोहरा रहे हैं।
पहले चरण का मतदान बिहार के भविष्य की सबसे बड़ी परीक्षा है। सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए।
पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति नीतीश बनाम तेजस्वी के इर्द-गिर्द घूमती रही है।
अब यह चरण तय करेगा कि जनता स्थिरता को चुनेगी या बदलाव को।
6 नवंबर केवल 121 सीटों का नहीं, बल्कि बिहार की अगली पांच साल की राजनीति का फैसला करेगा।


