
आधुनिक वैवाहिक रिश्तों में बढ़ रही स्वार्थपरता, समाज के लिए चेतावनी का संकेत
प्रमुख संवाददाता स्वराज इंडिया
कानपुर।
कभी सात जन्मों के बंधन कहे जाने वाले पति-पत्नी के रिश्ते आज बदलते समय के साथ संवेदनाओं से अधिक स्वार्थ और अहंकार के घेरे में सिमटते जा रहे हैं। ऐसा ही एक ताज़ा मामला कानपुर के नौबस्ता क्षेत्र से सामने आया है, जहां एक पत्नी ने अपने ही पति से कहा कि “मेरे साथ रहना है तो पहले एक करोड़ रुपए दो।”
जानकारी के अनुसार, नौबस्ता निवासी बजरंग भदौरिया की शादी वर्ष 2023 में गाजियाबाद की लक्षिता सिंह से हुई थी। विवाह के बाद लक्षिता ने सरकारी अध्यापिका बनने की इच्छा जताई। पत्नी के सपनों को साकार करने के लिए बजरंग ने उसे दिल्ली और अन्य शहरों के कोचिंग संस्थानों में महंगी फीस भरकर पढ़ाया। मेहनत रंग लाई और लक्षिता को दिल्ली में सरकारी शिक्षिका की नौकरी मिल गई।
परंतु नौकरी मिलते ही रिश्तों की गर्माहट ठंडी पड़ गई। लक्षिता ने पति से दूरी बना ली और अधिकतर समय दिल्ली या मायके में रहने लगी। जब बजरंग ने पत्नी से इस दूरी की वजह पूछी तो बात झगड़े में बदल गई। आरोप है कि लक्षिता ने कहा कि “तुम्हारी कोई हैसियत नहीं, अगर मेरे साथ रहना है तो पहले एक करोड़ रुपए दो।”
बजरंग का कहना है कि लक्षिता के माता-पिता भी उसी के सुर में सुर मिलाने लगे हैं। परेशान पति ने पुलिस से शिकायत की है और आरोप लगाया है कि पत्नी उसे दहेज उत्पीड़न के झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दे रही है।
यह मामला सिर्फ एक परिवार की परेशानी नहीं, बल्कि बदलते सामाजिक मूल्यों और वैवाहिक रिश्तों में बढ़ती स्वार्थपरता की झलक है। पहले जहां पत्नियां परिवार के साथ सुख-दुख साझा करती थीं, वहीं अब कई मामलों में विवाह एक “स्वार्थ का सौदा” बनता जा रहा है।
समाजशास्त्रियों का कहना है कि आज के दौर में पति-पत्नी का रिश्ता साझेदारी से अधिक प्रतिस्पर्धा में बदलता जा रहा है। जहां समानता की भावना अच्छी है, वहीं ‘अहं’ और ‘लालच’ ने कई रिश्तों की नींव हिला दी है।
यह समय आत्ममंथन का है। विवाह केवल सामाजिक संस्था नहीं, बल्कि विश्वास, सम्मान और सहयोग पर आधारित रिश्ता है। यदि शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता का उद्देश्य एक-दूसरे को सशक्त बनाना है, तो वह रिश्तों को मजबूत करती है; लेकिन यदि इन्हीं के माध्यम से अहंकार और स्वार्थ पनपता है, तो यह समाज की स्थिरता के लिए गंभीर खतरा है।


