
दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली रोहिणी घावरी ने दी सुसाइड की धमकी
घटना को लेकर प्रतिक्रियाएँ और राजनीतिक निहितार्थ अलग अलग निकाले जा रहे हैं, स्वराज इंडिया की विश्लेषण रिपोर्टिंग पढ़िए
स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
नयी दिल्ली —भारत निवासी वर्तमान में स्विट्ज़रलैंड में रहने वाली पीएचडी शोधार्थी रोहिणी घावरी ने सोशल मीडिया (X) पर भारतीय सांसद और भीम आर्मी/अज़ाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर (Chandrashekhar) आज़ाद पर यौन और भावनात्मक शोषण (sexual exploitation / emotional exploitation) के गंभीर आरोप लगाए हैं। ख़बरों के मुताबिक़ रोहिणी ने बुधवार दोपहर करीब 2 बजे X पर सुसाइट की धमकी देते हुए एक श्रृंखला पोस्ट कीं — जिनमें उन्होंने कहा कि उनका जीवन बर्बाद कर दिया गया है और उन्होंने पीएम और PMO को टैग करते हुए लिखा कि “मेरी लाश भी भारत वापस मत लाना। किसी ने नहीं सुनी मेरी”। यह ट्वीट्स चार घंटे के भीतर तीन पोस्ट के रूप में किये गए। (आपके विवरण के अनुसार समय वही है; मामले पर समाचार संस्थानों की कवरेज जारी है)।
रोहिणी ने आरोप लगाया है कि चंद्रशेखर ने उन्हें धोखे में ला कर शारीरिक/यौन संबंध बनाए और बाद में उनका शोषण किया गया — साथ में कुछ निजी सामग्री के सार्वजनिक होने का भी नाम लिया जा रहा है। उन्होंने दावा किया है कि उन्होंने पहले कहीं शिकायत करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस/प्रशासनिक एजेंसियों की निष्क्रियता और राजनीतिक दबाव के कारण एफआईआर दर्ज नहीं हो पा रही है। कई समाचार संस्थानों ने इन दावों की रिपोर्टिंग की है और रोहिणी की शिकायतों का जिक्र किया है।
महिला आयोग ने कहा कि आरोपों की जांच होगी !
उत्तर प्रदेश महिला आयोग और कुछ स्थानीय प्रतिनिधियों ने कहा है कि यदि आरोप सत्य पाए गए तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी — उदाहरण के लिये राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष (उर्फ Aparna Yadav जिनके बयान का समाचार में हवाला है) ने कहा कि दोषी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई होगी। परंतु अभी तक (प्रकाशित रिपोर्ट्स के अनुसार) कोई स्वतंत्र, निर्णायक सरकारी घोषणा या एफआईआर की पुष्टि सार्वजनिक रूप से नहीं आई है।
मीडिया व सोशल चैनलों पर मामला तीव्र बहस का विषय बना हुआ है; कुछ चैनल/पेज रोहिणी के पक्ष में आवाज़ उठा रहे हैं तो कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ने तथ्यों की पड़ताल और दोनों पक्षों का बयान मांगने का रुख रखा है।

पीड़िता ने शिकायत दर्ज करवाने की कोशिश की, लेकिन राजनीतिक दबाव आया सामने
प्रकाशित रिपोर्ट्स यह संकेत देती हैं कि पीड़िता ने शिकायत तो दर्ज करवाने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय/राजनीतिक दबाव का हवाला देते हुए आरोप लगाया जा रहा है कि मामले की त्वरित कार्रवाई नहीं हुई। कुछ समाचार—विशेषकर लोकल/ऑनलाइन पोर्टल—बताते हैं कि पीड़िता ने नेशनल कमीशन फॉर वुमन (NCW) को भी लिखा था या पीएमओ को टैग किया था; हालांकि आधिकारिक तौर पर एफआईआर/कानूनी प्रगति की सार्वजनिक पुष्टि उपलब्ध नहीं है। (कानूनी निष्पक्षता के सिद्धांत के तहत यह ज़रूरी है कि आरोपों को केवल “आरोप” के रूप में ही रिपोर्ट किया जाये जब तक अदालत/पुलिस ने पुष्टि न कर दी हो)।
राजनीतिक और चरित्र सम्बन्धी निहितार्थ (विश्लेषण)
- नेताओं की सार्वजनिक छवि vs निजी आरोप — उच्च सार्वजनिक प्रतिष्ठा वाले नेताओं पर ऐसे आरोप राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत संवेदनशील होते हैं। जब आरोप नेता के खिलाफ आते हैं तो मीडिया, प्रतिद्वन्द्वी दल और सामाजिक समूह इसे व्यापक रूप से उपयोग में लाते हैं — इससे नेता की नैतिक छवि पर तात्कालिक प्रभाव पड़ता है। चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नेताओं की स्थिति दो स्तरों पर देखी जाती है: एक तरफ़ वे दलित अधिकारों के प्रतीक/आवाज़ बनकर उठे हैं; दूसरी तरफ़ आरोपों ने उनके caráter पर प्रश्न खड़े कर दिये हैं — पर न्यायिक या पुलिसिक पुष्टि के बिना आरोपों को दोष सिद्ध नहीं माना जा सकता।

- राजनीति में दलित नेतृत्व की विरासत और संवेदनशीलता — आज़ाद का राजनीतिक उदय और भीम आर्मी/अज़ाद समाज पार्टी के रूप में उनका नेतृत्व दलित राजनीति में नया केंद्र बनाता है। ऐसे में उन पर लगे आरोप समुदाय के भीतर अनुभूत क्रोध और समर्थन दोनों को बढ़ा सकते हैं — और राजनीतिक विरोधी इस मुद्दे का उपयोग मतभेद पैदा करने के लिए कर सकते हैं। इसलिए नेताओं पर लगे व्यक्तिगत आरोप अक्सर सामुदायिक-राजनीतिक प्रभाव भी पैदा करते हैं।
- प्रभावित व्यक्ति की आवाज़ और संस्थागत जवाबदेही — रोहिणी के ट्वीट्स और सुसाइड की धमकी जैसी घटनाएँ यह संकेत देती हैं कि पीड़ितों को सुनने और उन तक कानूनी सहायता पहुँचाने के वर्तमान तंत्र में कमियाँ हो सकती हैं — खासकर जब आरोपी कोई प्रभावशाली सार्वजनिक हस्ती हो। मीडिया और नागरिक संस्थाओं की भूमिका — पीड़ित की सुरक्षा सुनिश्चित करने, जानकारी सत्यापित करवाने और उचित कानूनी मार्गदर्शन दिलवाने — अहम बन जाती है।
मामला बढ़ता जा रहा है, एक्शन हो सकता है
फिलहाल उपलब्ध रिपोर्टिंग में आरोप सार्वजनिक किए गए हैं और पीड़िता द्वारा सोशल मीडिया और कुछ संस्थाओं को शिकायत दर्ज कराने की बात सामने आ चुकी है; पर कोई निर्णायक अदालतीन/पुलिसिक निर्णय अभी सार्वजनिक नहीं हुआ। इसलिए समाचार में इसे “आरोप” या “दावा” के रूप में ही रिपोर्ट करना पत्रकारिता का नैतिक कर्तव्य है।



