Wednesday, September 3, 2025
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शिक्षकों को नौकरी बचानी है तो पास करनी होगी टीईटी परीक्षा

शिक्षक दिवस से ठीक पहले शिक्षकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

स्वराज इंडिया न्यूज ब्यूरो
लखनऊ।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से जस्टिस दिपांकर दत्ता और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने 1 सितंबर को शिक्षक पात्रता परीक्षा के संबंध में बड़ा निर्णय दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि सेवा में बने रहने के लिए सभी शिक्षकों को अनिवार्य रूप से टेट पास करना होगा। टीईटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है हालांकि जिन शिक्षकों की सेवा सेवानिवृत्ति में सिर्फ 5 साल से कम शेष हैं वे बिना टेट पास किए भी कार्यरत रह सकते हैं लेकिन कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जो शिक्षक परीक्षा पास नहीं कर पाएंगे वे या तो सेवा छोड़ सकते हैं या फिर अनिवार्य सेवानिवृत्ति लेकर टर्मिनल बेनिफिट्स (सेवा लाभ) प्राप्त कर सकते हैं। यह फैसला तमिलनाडु और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों से आई याचिकाओं को लेकर दिया गया है। बता दें कि नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (एनसीटीई) ने 2010 में यह न्यूनतम योग्यता तय की थी कि कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले शिक्षकों को नियुक्ति के लिए टेट पास करना जरूरी होगा। इसके बाद से ही यह परीक्षा किसी भी अध्यापक की शिक्षण गुणवत्ता सुनिश्चित करने का माध्यम मानी गई किंतु सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए सभी के लिए टीईटी को अनिवार्य कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में विसंगति-
सुप्रीम कोर्ट ने अभी कुछ साल पहले डिसीजन दिया था कि बीएड वाले प्राइमरी के लिए एलिजिबल नहीं है तो वे प्राथमिक स्तर के टेट का फॉर्म ही नहीं भर सकते टेट कैसे पास करेंगे। जिनकी नियुक्ति 2000 से पहले हुई है तब इंटर पास ही बीटीसी करते थे वह भी टेट का फॉर्म नहीं भर सकते। बीपीएड डिग्री वाले शिक्षक भी वर्तमान में प्राथमिक शिक्षक की टेट परीक्षा के लिए अपात्र घोषित किये गये हैं ऐसे में वो भी टीईटी कैसे उत्तीर्ण करेंगे। कई ऐसे शिक्षक हैं जो मृतक आश्रित में लगे हैं वह सिर्फ इंटरमीडिएट ही पास हैं उन्हें टेट एग्जाम में कैसे शामिल किया जाएगा। इन विसंगतियों को देखते हुए अब अनेक शिक्षक पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की योजना बना रहे हैं। उनका तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश कई समानांतर आदेशों के साथ परस्पर विरोधी (कंट्राडिक्टरी) है और जब तक इन विषयों पर न्यायिक स्पष्टता नहीं आती खराब नीति के चलते शिक्षकों का स्थायित्व खतरे में बना रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पैदा हुई विसंगतियों और विरोधाभासों के कारण शिक्षकों का भविष्य अस्थिर हो गया है। सर्वोच्च न्यायालय को अपने आदेशों में स्पष्टता एवं समन्वय लाना जरूरी है ताकि शिक्षक समुदाय के साथ न्याय हो सके।

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